Tech
|
Updated on 10 Nov 2025, 09:29 am
Reviewed By
Satyam Jha | Whalesbook News Team
▶
कर्नाटक अपनी विधानसभा के दिसंबर शीतकालीन सत्र में फर्जी खबरों और दुष्प्रचार (fake news and disinformation) के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए एक विधेयक पेश करने की तैयारी कर रहा है। एक कार्यक्रम में बोलते हुए, राज्य के आईटी मंत्री प्रियांक खड़गे ने प्रौद्योगिकी से उत्पन्न होने वाले बड़े खतरे पर प्रकाश डाला, खासकर सुलभ AI उपकरणों के आने से जो विश्वसनीय डीपफेक और क्लोन की हुई आवाजें बना सकते हैं। प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य उन लोगों को बदनाम और शर्मिंदा करके गलत सूचनाओं पर अंकुश लगाना है जो झूठी बातें फैलाते हैं, और ऐसी सामग्री को बढ़ावा देने वाले प्लेटफार्मों को विनियमित करना है, जिससे वे अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार बन जाएं। खड़गे ने स्पष्ट किया कि सरकार का इरादा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, रचनात्मकता या राय को दबाना नहीं है। इस चर्चा में विशेषज्ञों ने चिंता जताई कि सरकार 'सत्य का मध्यस्थ' (arbiter of truth) बन सकती है और इसके दुरुपयोग का खतरा है, उन्होंने पिछले उदाहरणों का भी जिक्र किया। उन्होंने गलत सूचनाओं से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए महत्वपूर्ण सोच (critical thinking) और शिक्षा की आवश्यकता पर भी जोर दिया। विधेयक का उद्देश्य प्लेटफार्मों और कानून को एक साथ लाना है, साथ ही संवैधानिक सीमाओं का सम्मान सुनिश्चित करना है।
प्रभाव: कर्नाटक द्वारा उठाया गया यह विधायी कदम अन्य भारतीय राज्यों के लिए ऑनलाइन सामग्री और AI-संचालित दुष्प्रचार को नियंत्रित करने में एक मिसाल (precedent) कायम कर सकता है। यह डिजिटल सुरक्षा के प्रति एक सक्रिय दृष्टिकोण को दर्शाता है, लेकिन साथ ही नियंत्रण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन पर बहस भी छेड़ता है, जो इस क्षेत्र में काम कर रहे डिजिटल मीडिया और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।