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Updated on 16th November 2025, 4:43 AM
Author
Abhay Singh | Whalesbook News Team
भारत में खाद्य महंगाई (food inflation) के वित्त वर्ष 26 (FY26) की दूसरी छमाही में कंट्रोल में रहने की उम्मीद है, जिसका श्रेय बेहतर मॉनसून और बुवाई को जाता है। हालांकि, ICICI बैंक की रिपोर्ट चेतावनी देती है कि "adverse base" effect के कारण FY27 में फूड इन्फ्लेशन बढ़ सकता है। यह आउटलुक थोक महंगाई (wholesale inflation) के कम होने के बाद आया है, जो प्राइमरी फूड आर्टिकल्स (जैसे सब्जियां, अनाज, दालें) की कीमतों में गिरावट से हुआ है। फ्यूल इन्फ्लेशन भी लो रहा, जबकि मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स में इन्फ्लेशन मॉडरेट हुआ।
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ICICI Bank की ग्लोबल मार्केट्स की रिपोर्ट बताती है कि इंडिया में फूड इन्फ्लेशन H2 FY26 में कंट्रोल्ड रहेगी, जिसका कारण अच्छा मॉनसून और बेहतर बुवाई है। लेकिन, रिपोर्ट FY27 में "adverse base" effect की वजह से फूड इन्फ्लेशन बढ़ने का खतरा जता रही है। 'बेस इफ़ेक्ट' का मतलब है कि पिछले साल की कीमतों की तुलना में महंगाई कैसे दिखती है। अगर पिछले साल कीमतें लो थीं, तो करंट स्लाइट हाइक्स बड़ी दिखेंगी। होलसेल इन्फ्लेशन 2 साल के लो पर है, अक्टूबर में तो यह निगेटिव (contraction territory) में भी चली गई थी। इस डिसइन्फ्लेशन की मुख्य वजह प्राइमरी फूड आर्टिकल्स (जैसे सब्जियां, अनाज, दालें, मसाले, फल) की कीमतों में आई भारी गिरावट है। सब्जियों की कीमतों में स्थिर सप्लाई और अच्छे मौसम से नरमी आई है, जबकि अनाज, दालों, मसालों और फलों की कीमतों में भी गिरावट दर्ज की गई है। पिछले महीने के मुकाबले खाद्य पदार्थों की कीमतों में आम तौर पर स्थिरता देखी गई है, जो पहले की तेज गिरावट के बाद स्टेबिलाइजेशन का संकेत है। खाद्य और गैर-खाद्य दोनों वस्तुओं से प्रभावित प्राइमरी आर्टिकल्स की विस्तृत कैटेगरी में भी कई महीनों से संकुचन (contraction) देखा जा रहा है। रिपोर्ट खासतौर पर टमाटर, प्याज और कुछ अनाजों जैसे प्रमुख हाई-फ्रीक्वेंसी आइटम्स की कीमतों में सुधार का जिक्र करती है, जिन्होंने इस साल होलसेल फूड इन्फ्लेशन को कम करने में बड़ी भूमिका निभाई है। फ्यूल इन्फ्लेशन भी निगेटिव ज़ोन में बना हुआ है, जिसका एक कारण पिछले साल की तुलना में ग्लोबल क्रूड ऑयल की कीमतें कम होना है। हालांकि कुछ पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की कीमतों में महीने-दर-महीने बढ़ोतरी देखी गई, लेकिन कुल मिलाकर फ्यूल और पावर इंडेक्स शांत रहा। मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स में इन्फ्लेशन भी मॉडरेट हुआ है, जिसमें मेटल्स और कुछ इंडस्ट्रियल इनपुट्स की कीमतें घटी हैं। हालांकि, ज्वेलरी, टोबैको, फार्मास्यूटिकल्स और कुछ खास फैब्रिकेटेड मेटल्स जैसे कुछ सेगमेंट में कीमतों का ट्रेंड ऊपर की ओर है, जो बताता है कि ग्लोबल कमोडिटी प्राइस मूवमेंट्स आने वाले महीनों में कुछ ऊपर की ओर दबाव डाल सकते हैं। इम्पैक्ट: इस खबर का भारतीय शेयर बाजार पर मध्यम प्रभाव है (रेटिंग: 6/10)। खासतौर पर फूड इन्फ्लेशन का दबाव सीधे कंज्यूमर की खर्च करने की क्षमता और कंपनियों के खर्चों (corporate costs) को प्रभावित करता है। इन्फ्लेशन में बदलाव RBI के मॉनेटरी पॉलिसी फैसलों, जैसे इंटरेस्ट रेट्स को प्रभावित कर सकते हैं, जो बदले में बिजनेसेज के लिए उधारी की लागत और निवेशक सेंटिमेंट को भी प्रभावित करते हैं। जबकि H2 FY26 के लिए शॉर्ट-टर्म आउटलुक पॉजिटिव दिख रहा है, FY27 की चेतावनी पर निवेशकों को सतर्क रहने की जरूरत है। मुश्किल शब्दों की व्याख्या: बेस इफ़ेक्ट (Base Effect): किसी पिछली अवधि में असामान्य रूप से उच्च या निम्न महंगाई के कारण वर्तमान महंगाई दर पर पड़ने वाला असर। उदाहरण के लिए, अगर पिछले साल किसी महीने में खाने-पीने की चीजें बहुत सस्ती थीं, तो इस साल भले ही कीमतें थोड़ी ही बढ़ी हों, महंगाई दर काफी ज़्यादा दिखेगी।
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