Law/Court
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Updated on 09 Nov 2025, 06:01 am
Reviewed By
Aditi Singh | Whalesbook News Team
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भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 'इन री समनिंग एडवोकेट्स' (In Re Summoning Advocates) नामक अपने फैसले में यह निर्धारित किया है कि इन-हाउस लीगल काउंसिल भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 132 द्वारा आवश्यक 'वकीलों' (advocates) की स्थिति नहीं रखते हैं। इसके परिणामस्वरूप, इन आंतरिक वकीलों द्वारा दी गई संचार और सलाह को इस विशिष्ट प्रावधान के तहत कानूनी विशेषाधिकार (legal privilege) प्राप्त नहीं होगा। इस फैसले के दूरगामी निहितार्थ हैं, खासकर बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए जिनका भारत में महत्वपूर्ण परिचालन है। आंतरिक कानूनी टीमें अक्सर महत्वपूर्ण सलाह संभालती हैं, जोखिम मूल्यांकन का मसौदा तैयार करती हैं, और कानूनी मामलों पर खुलकर चर्चा करती हैं। पहले, ऐसी जानकारी विशेषाधिकार से सुरक्षित हो सकती थी। अब, यदि भारत में कानूनी कार्यवाही शुरू होती है, तो यह गोपनीय जानकारी प्रकटीकरण के अधीन हो सकती है, जिससे व्यावसायिक रणनीति और संवेदनशील डेटा को महत्वपूर्ण जोखिम होगा। यह निर्णय सामान्य कानून के अधिकार क्षेत्रों (common law jurisdictions) में स्थापित सिद्धांतों को नजरअंदाज करता है, जहां मुकदमेबाजी विशेषाधिकार (litigation privilege) कानूनी लड़ाइयों के लिए स्पष्ट संचार को प्रोत्साहित करता है (Waugh v. British Railways Board)। यह बॉम्बे हाई कोर्ट के लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड बनाम प्राइम डिस्प्लेज़ प्राइवेट लिमिटेड (Larsen & Toubro Ltd v. Prime Displays Pvt Ltd) के दृष्टिकोण के विपरीत भी है, जिसने मुकदमेबाजी की प्रत्याशा में बनाए गए दस्तावेजों के लिए विशेषाधिकार को स्वीकार किया था। आधुनिक कॉर्पोरेट दुनिया समय पर, व्यावसायिक रूप से सूक्ष्म सलाह के लिए इन-हाउस लीगल काउंसिल पर बहुत अधिक निर्भर करती है, जो उस परिदृश्य से काफी अलग है जब विशेषाधिकार नियमों को लगभग एक सदी पहले तैयार किया गया था। अदालत का BSA की भाषा पर सख्त पालन वर्तमान व्यावसायिक वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं हो सकता है। भारत की अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों के केंद्र बनने की महत्वाकांक्षा को देखते हुए, कानूनी विशेषाधिकार में पूर्वानुमान बनाए रखना महत्वपूर्ण है। लेख सुझाव देता है कि इस मुद्दे पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, या तो विधायी संशोधनों के माध्यम से या 'इन री समनिंग एडवोकेट्स' निर्णय की न्यायिक समीक्षा के माध्यम से, ताकि रोजगार की स्थिति के बावजूद कानूनी सलाहकारों में विश्वास बना रहे। प्रभाव: यह निर्णय कॉर्पोरेशनों के लिए कानूनी जोखिम बढ़ा सकता है, क्योंकि आंतरिक कानूनी सलाह संभावित रूप से खोज (discovery) के अधीन हो सकती है। यह भारत में कंपनियों को गोपनीय कानूनी संचार का प्रबंधन और सुरक्षा कैसे करनी है, इसमें फेरबदल करने की आवश्यकता पैदा कर सकता है, खासकर उन संचारों में जिनमें सीमा पार पहलू शामिल हैं। रेटिंग: 8/10।