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₹3,000 करोड़ के साइबर फ्रॉड से सुप्रीम कोर्ट हैरान, सख्त कार्रवाई की मांग

Law/Court

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3rd November 2025, 8:47 AM

₹3,000 करोड़ के साइबर फ्रॉड से सुप्रीम कोर्ट हैरान, सख्त कार्रवाई की मांग

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Short Description :

सुप्रीम कोर्ट ने लगभग ₹3,000 करोड़ के साइबर फ्रॉड, खासकर "डिजिटल अरेस्ट स्कैम" से हुई वसूली पर हैरानी जताई है। एक स्वतः संज्ञान (suo motu) मामला सुनते हुए, अदालत ने सख्त उपायों की अपील की। गृह मंत्रालय (MHA) ने अदालत को सूचित किया कि एक समर्पित इकाई प्रयासों का समन्वय कर रही है। यह कार्रवाई उस मामले के बाद हुई है जिसमें वरिष्ठ नागरिकों ने सीबीआई और न्यायिक अधिकारियों का रूप धारण करने वाले ठगों को ₹1.5 करोड़ गंवा दिए थे।

Detailed Coverage :

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने लगभग ₹3,000 करोड़ के साइबर फ्रॉड, विशेष रूप से "डिजिटल अरेस्ट स्कैम" से हुई वसूली को "चौंकाने वाला" बताया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची ने इस बात पर जोर दिया कि सख्त आदेशों के बिना यह समस्या और बढ़ेगी, और उन्होंने "लौह हाथों" से इससे निपटने का संकल्प लिया।\n\nयह कड़ा रुख तब आया है जब अदालत राष्ट्रव्यापी डिजिटल अरेस्ट स्कैम की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए स्वतः संज्ञान (suo motu) मामला सुन रही है। पहले, अदालत ने सभी राज्यों को दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) का विवरण जमा करने का निर्देश दिया था और सीबीआई की सभी ऐसे मामलों को संभालने की क्षमता पर सवाल उठाया था।\n\nइसके जवाब में, गृह मंत्रालय (MHA) और सीबीआई ने एक सीलबंद रिपोर्ट पेश की। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि एमएचए के भीतर एक अलग इकाई इन घोटालों से निपटने के लिए सक्रिय रूप से समन्वय और कदम उठा रही है। अदालत ने संकेत दिया कि जल्द ही उचित निर्देश जारी किए जाएंगे और अगली सुनवाई 10 नवंबर के लिए तय की गई है।\n\nयह मामला एक वरिष्ठ नागरिक दंपत्ति की शिकायत से शुरू हुआ, जिन्होंने 1 सितंबर से 16 सितंबर के बीच ठगों को ₹1.5 करोड़ गंवा दिए थे। ये जालसाज सीबीआई, इंटेलिजेंस ब्यूरो और न्यायपालिका के अधिकारियों का रूप धारण करके आए थे, और पैसा निकालने के लिए जाली अदालती आदेशों और गिरफ्तारी की धमकियों का इस्तेमाल किया। इसके बाद, दो एफआईआर दर्ज की गईं, जिनमें वरिष्ठ नागरिकों को निशाना बनाने वाले एक संगठित पैटर्न का पता चला। अदालत ने पहले भी इसी तरह के घोटालों की मीडिया रिपोर्टों पर ध्यान दिया था और सरकार व सीबीआई से जवाब मांगा था, साथ ही अटॉर्नी जनरल की सहायता भी मांगी थी।\n\n**Impact:** यह खबर भारतीय नागरिकों और व्यवसायों को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण वित्तीय अपराध को उजागर करती है। इससे डिजिटल सुरक्षा को लेकर निवेशकों की सतर्कता बढ़ सकती है, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कड़े नियमों की मांग हो सकती है, और उपभोक्ता विश्वास पर भी असर पड़ सकता है। आर्थिक नुकसान और न्यायपालिका की सक्रिय भागीदारी इसकी गंभीरता को रेखांकित करती है, जो आर्थिक नीति और साइबर सुरक्षा निवेश को प्रभावित कर सकती है। व्यापक भारतीय शेयर बाजार पर इसका प्रभाव अप्रत्यक्ष हो सकता है, जो भावना (sentiment) को प्रभावित करेगा, हालांकि साइबर सुरक्षा और आईटी सेवा क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित होने की संभावना है। रेटिंग: 7/10।\n\n**Difficult Terms:**\n* Suo motu: अदालत द्वारा स्वयं की पहल पर की गई कार्रवाई।\n* FIR (First Information Report): संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस द्वारा दर्ज की गई रिपोर्ट।\n* CBI (Central Bureau of Investigation): भारत की प्रमुख जांच पुलिस एजेंसी।\n* MHA (Ministry of Home Affairs): भारत सरकार का एक मंत्रालय, जो देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है।\n* Solicitor General: सरकार का एक वरिष्ठ कानूनी अधिकारी, जो अदालत में सरकार का प्रतिनिधित्व करता है।\n* Digital arrest scams: एक प्रकार का साइबर फ्रॉड जिसमें धोखेबाज कानून प्रवर्तन या न्यायिक अधिकारियों का प्रतिरूपण करते हैं, और पीड़ितों को रिश्वत या जुर्माना न देने पर गिरफ्तारी की धमकी देते हैं।