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सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावों के लिए समय सीमा रोकी, बीमा क्षेत्र पर प्रभाव

Insurance

|

Updated on 07 Nov 2025, 11:36 am

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Reviewed By

Satyam Jha | Whalesbook News Team

Short Description:

सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166(3) के तहत मोटर दुर्घटना मुआवजा दावों को दाखिल करने के लिए छह महीने की समय सीमा पर रोक लगा दी है। यह अंतरिम आदेश न्यायाधिकरणों और उच्च न्यायालयों को केवल देरी के आधार पर दावों को खारिज करने से रोकता है, जब तक कि संशोधन की संवैधानिक वैधता पर निर्णय नहीं आ जाता। इस कदम का उद्देश्य दुर्घटना पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित करना है और यह बीमा कंपनियों की देनदारियों को भी प्रभावित कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावों के लिए समय सीमा रोकी, बीमा क्षेत्र पर प्रभाव

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Stocks Mentioned:

ICICI Lombard General Insurance Company Limited

Detailed Coverage:

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश जारी किया है जिसमें देश भर के सभी मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों (Motor Accident Claims Tribunals) और उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया गया है कि वे सड़क दुर्घटना पीड़ितों से मुआवजे के दावों को दाखिल करने में देरी के कारण खारिज न करें। इस आदेश ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166(3) के संचालन को स्थगित कर दिया है, जिसमें ऐसे याचिकाएं दायर करने के लिए छह महीने की एक सख्त समय सीमा लगाई गई थी। अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि यह समय सीमा, दुर्घटना पीड़ितों को राहत प्रदान करने के विधायी इरादे के साथ कैसे संरेखित होती है। यह निर्णय उस मामले की सुनवाई के दौरान आया है जो 2019 के उस संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रहा था जिसने इस सीमा को फिर से पेश किया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि छह महीने की यह बाधा मनमानी है, पीड़ितों की न्याय तक पहुँच को सीमित करती है, और मोटर वाहन अधिनियम की कल्याणकारी प्रकृति को कमजोर करती है। ऐतिहासिक रूप से, कानून में बिना किसी सख्त समय सीमा के या स्वीकार्य देरी के साथ दावे दायर करने की अनुमति थी। 2019 में छह महीने की बाधा को फिर से पेश करना एक अनुचित प्रतिबंध माना गया था। सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश से एक महत्वपूर्ण राहत मिली है, जो मुख्य कानूनी मुद्दा हल होने तक देरी के आधार पर दावों को खारिज होने से बचाता है।

प्रभाव: इस फैसले से संसाधित किए जाने वाले मुआवजे के दावों की संख्या में वृद्धि हो सकती है, जिससे मोटर बीमा कंपनियों की भुगतान देनदारियां बढ़ सकती हैं। यह एक महत्वपूर्ण नियामक हस्तक्षेप का प्रतिनिधित्व करता है जो बीमाकर्ताओं की वित्तीय प्रावधान और दावा निपटान प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है। रेटिंग: 6/10।

कठिन शब्दों की व्याख्या: मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT): सड़क दुर्घटनाओं से उत्पन्न होने वाले मुआवजे के दावों का निर्णय करने के लिए स्थापित विशेष अदालतें या निकाय। मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166(3): अधिनियम के भीतर एक प्रावधान जो उस समय सीमा को निर्दिष्ट करता है जिसके भीतर मुआवजे के लिए दावा याचिका दायर की जानी चाहिए। 2019 के संशोधन ने इस उप-धारा के तहत छह महीने की सीमा पेश की थी। संवैधानिक वैधता: यह निर्धारित करने का कानूनी सिद्धांत कि कोई कानून या कार्रवाई भारत के संविधान के प्रावधानों और सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं। समय सीमा (Limitation Period): एक वैधानिक समय सीमा जिसके भीतर कानूनी कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए। यदि इस अवधि के बाद दावा दायर किया जाता है, तो उसे वर्जित किया जा सकता है।


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