Environment
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Updated on 12 Nov 2025, 04:01 am
Reviewed By
Akshat Lakshkar | Whalesbook News Team

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नेट-ज़ीरो उत्सर्जन (Net-Zero emissions) के भारत के प्रयासों को उसकी 'ब्लू इकोनॉमी' से काफी बढ़ावा मिल सकता है - यह आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए महासागर संसाधनों का सतत उपयोग है। 11,000 किमी से अधिक की तटरेखा के बावजूद, इस ट्रिलियन-डॉलर की क्षमता को नजरअंदाज किया गया है। केंद्रीय बजट 2024-25 ने 'ब्लू इकोनॉमी 2.0' लॉन्च किया है, जो जलीय कृषि (aquaculture), समुद्री कृषि (mariculture), और समुद्री पर्यटन के माध्यम से जलवायु-लचीला (climate-resilient) तटीय आजीविका पर केंद्रित है। बजट 2025-26 में समुद्री विकास निधि (Maritime Development Fund) के लिए ₹25,000 करोड़ का आवंटन किया गया है जो जहाज निर्माण (shipbuilding), बंदरगाह विद्युतीकरण (port electrification), और लॉजिस्टिक्स में निवेश करेगा, साथ ही मत्स्य पालन क्षेत्र को भी बढ़ावा देगा। मैंग्रोव (mangroves) जैसे महत्वपूर्ण 'ब्लू कार्बन' (blue carbon) पारिस्थितिकी तंत्र, जो महत्वपूर्ण मात्रा में कार्बन को अवशोषित (sequester) करते हैं, खतरे में हैं और उन्हें जलवायु लेखांकन (climate accounting) और कार्बन बाजारों (carbon markets) में औपचारिक एकीकरण की आवश्यकता है।