Economy
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Updated on 06 Nov 2025, 07:05 am
Reviewed By
Akshat Lakshkar | Whalesbook News Team
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भारतीय इक्विटी में घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) की भागीदारी में भारी वृद्धि हुई है, जो सितंबर तिमाही तक एनएसई-सूचीबद्ध कंपनियों में 18.26% के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई है। यह एक महत्वपूर्ण वृद्धि है और 25 वर्षों में DII और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) होल्डिंग्स के बीच सबसे बड़ा अंतर दर्शाता है। इसके विपरीत, विदेशी स्वामित्व 16.71% तक गिर गया है, जो 13 वर्षों का निम्नतम स्तर है। DII होल्डिंग्स ने पहली बार मार्च तिमाही में FPI होल्डिंग्स को पार किया था, और तब से यह प्रवृत्ति तेज हुई है। घरेलू निवेश की वृद्धि मुख्य रूप से खुदरा निवेशकों से लगातार आवक (inflows) द्वारा संचालित होती है, विशेष रूप से म्यूचुअल फंड और उनकी व्यवस्थित निवेश योजनाओं (SIPs) के माध्यम से, जो अब सूचीबद्ध कंपनियों के 10.9% शेयरों का प्रतिनिधित्व करती हैं। जुलाई-सितंबर अवधि में, घरेलू निवेशकों ने ₹2.21 लाख करोड़ के शेयर खरीदे, जबकि विदेशी निवेशकों ने ₹1.02 लाख करोड़ के भारतीय स्टॉक बेचे। विदेशी फंड मैनेजर वैश्विक अनिश्चितताओं, भारतीय बाजार के उच्च मूल्यांकन और चीन, ताइवान और कोरिया जैसे अन्य उभरते बाजारों को प्राथमिकता देने के कारण अपना एक्सपोजर कम कर रहे हैं। दिसंबर 2020 से विदेशी निवेशकों द्वारा लगातार बिकवाली के बावजूद, भारतीय बाजार ने उल्लेखनीय लचीलापन दिखाया है, जिसका श्रेय मजबूत घरेलू आवक को जाता है जो महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान करती है, जैसा कि अतीत में नहीं होता था जब विदेशी बहिर्वाह (outflows) बाजार में गिरावट ला सकते थे। हालांकि, विदेशी फंड भारतीय IPOs में रुचि दिखा रहे हैं, तीसरी तिमाही में प्राथमिक बाजार पेशकशों में महत्वपूर्ण राशि का निवेश किया है। विश्लेषकों का सुझाव है कि FPIs वर्तमान माध्यमिक बाजार मूल्यांकन को लेकर सतर्क हैं, लेकिन यदि बाजार में सुधार होता है तो वे समर्थन बढ़ा सकते हैं। यह प्रवृत्ति भारतीय शेयर बाजार की बढ़ती आत्मनिर्भरता को दर्शाती है, जो अब विदेशी पूंजी प्रवाह पर कम निर्भर है। घरेलू आत्मविश्वास के लिए यह सकारात्मक है, लेकिन यदि विदेशी निवेश में कमी जारी रही तो संभावित वृद्धि सीमित हो सकती है या घरेलू आवक (inflows) कमजोर पड़ने पर अस्थिरता बढ़ सकती है। अब तक दिखाई गई लचीलापन एक परिपक्व बाजार का संकेत देता है।
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