Economy
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Updated on 07 Nov 2025, 12:52 am
Reviewed By
Akshat Lakshkar | Whalesbook News Team
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सारांश: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में घरेलू देनदारियां संपत्ति की तुलना में कहीं अधिक तेज़ी से बढ़ रही हैं। 2019-20 से 2024-25 के बीच, देनदारियां दोगुनी से भी ज़्यादा हो गईं (102% वृद्धि) जबकि संपत्ति 48% बढ़ी। जिससे 2015 में 26% रहा घरेलू कर्ज़-से-जीडीपी अनुपात 2024 के अंत तक 42% तक पहुँच गया है।
मुख्य निष्कर्ष और प्रभाव: यह वृद्धि मुख्य रूप से गैर-आवासीय खुदरा क्रेडिट (non-housing retail credit) से प्रेरित है, जो कर्ज़ का 55% है, जबकि होम लोन 29% है। यह आसान क्रेडिट पहुंच और महत्वाकांक्षी उपभोग (aspirational consumption) से जुड़ा है। इसके प्रभाव में भविष्य की ज़रूरतों के लिए घरेलू संपत्ति के संभावित क्षरण (erosion) शामिल हैं और यदि उपभोग उत्पादक न हो तो दीर्घकालिक व्यापक आर्थिक स्थिरता (macroeconomic stability) के लिए जोखिम। उच्च कर्ज़ वाली कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत, भारत में सामाजिक सुरक्षा जाल (social safety net) कमज़ोर है। रिपोर्ट एक प्रारंभिक चेतावनी संकेत के रूप में इस जाल को मज़बूत करने और व्यक्तिगत ऋणों को गृह ऋणों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक महंगा बनाने का सुझाव देती है।
प्रभाव रेटिंग: 7/10
परिभाषाएँ: * घरेलू क्षेत्र: व्यक्ति और परिवार। * शुद्ध ऋणग्रस्तता: कुल ऋण घटा वित्तीय संपत्ति। * जीडीपी: देश में उत्पादित वस्तुओं/सेवाओं का कुल मूल्य। * गैर-आवासीय खुदरा क्रेडिट: संपत्ति द्वारा सुरक्षित नहीं किए गए व्यक्तिगत ऋण। * महत्वाकांक्षी उपभोग: वांछित जीवन शैली प्राप्त करने के लिए खर्च। * व्यापक आर्थिक विकास: समग्र आर्थिक विकास। * सामाजिक सुरक्षा जाल: नागरिकों की आर्थिक भलाई के लिए सरकारी सहायता।